Friday, August 17, 2012

समाज से विलुप्त होते बंदरो का कारण

कहा जाता है की हमारे पूर्वज बन्दर हुआ करते थे। इसीलिए शायद हमारी काफी हरकतें उनसे मिलती जुलती हैं। ये बात कुछ जायदा पुरानी नहीं है। पहले के किस्से की तरह मैं अपनी कार में ही था  और अपने गाँव जा रहा था। मेरे पिताजी और माताजी को बंदरो को केले देने का शौक है। हर व्यक्ति का कोई न कोई शौक होता है।

उस दिन भी हमने रस्ते में से किसी एक ठेले पर से केले ख़रीदे और अपनी मंजिल की ओर चल दिए और साथ ही साथ देखते जा रहे थे की कहीं बन्दर दिख जाएँ तोह मैं अपनी गाड़ी वहां  रोक लूं। मुझे मेरी माँ ने बताया था की वह अक्सर जब जब वहां से गुज़रती हैं और गाड़ी वहां रुका के बंदरो को केले देते हैं और उनमे से कोई भी उन पर हमला नहीं करता है। जो की विश्वास करने के लायक नहीं था।

उस दिन भी वैसा ही हुआ। जब हमारी गाड़ी उस जगह रुकी तोह आस पास से सभी बन्दर निकल कर हमारी गाड़ी को घेर लिया। पता नहीं क्यूँ मुझे उनकी अन्दर एक जिज्ञासा नज़र आ रही थी हमने खिड़की से केले फेकने शुरू किये। कुछ ने दोनो हांथो में केले ले लिए, कुछ ने हाथ के साथ साथ मुह में भी फसा लिया और कुछ तो ये देख रहे थे की ऊनकी माँ उनके लिए भोजन इक्कठा कर रही है तो बेहतर है हम सिर्फ देखें। 

इस दृश्य को देख कर मेरे मन में ना जाने किस प्रकार की ख़ुशी थी। शयद बन्दर खुश थे कि कोई उनके लिए खाना लेकर आया है। क्यूँ न खुश हो इतने सुनसान जगह पर भला कौन उनको भोजन देता होगा। सवाल तोह ये उठा मेरे मन में क्या मनुष्य हमरे  पूर्वजो को भूल रहा है?  लोगो के मान में ये धारना क्यूँ है की बन्दर उनपर हमला करेगा ? बन्दर जाती को ऐसी क्या नौबत आ गयी जो वो जंगल छोड़ शहर में आ गया है ?

आइये लेकर चलते हैं आपको सीधे वहीँ जहाँ हमने अपने एक संवाददाता के द्वारा एक ऐसे ही पीड़ित बन्दर के घर का  पता लगाया और उनसे बात की।

संवाददाता: बन्दर महोदय जी......
बन्दर: खो खो...... देख मुझे इतनी इज्ज़त मत दे काम की बात कर.... खो खो.....

संवाददाता: नहीं नहीं देनी पड़ेगी भाई दर्शको की मांग है, आप ही हनुमान का रूप है, आप महान है.....
बन्दर: आ गया अपनी  पे बस बस मक्खन लगाना बंद कर मुझे और हनुमान को मक्खन पसंद नहीं है। हम लोग मक्खन श्री कृष्ण को पार्सल करते हैं।

संवाददाता: हाँ, तो बन्दर जी हमारे पाठको को बताइए की इस वक़्त आपकी सबसे बड़ी परेशानी क्या है।
बन्दर: .......म्मम्मम.....कुछ नहीं...सुबह मेरी बीवी मेरे लिए दो-चार  रोटियां चुरा लाती है बाकि शाम का खाना मैं चुरा लता हूँ और कुछ मेरे बेटे भी चुरा लेते हैं। 

संवाददाता: बन्दर जी आप चोरी करते हैं..... 
बन्दर: क्यूँ बे देश के बड़े बड़े लोग करते हैं तब तो तुम नहीं चिल्लाते बड़ा आया आप चोरी करते हैं..... :-P 

संवाददाता: हाँ, बात तो आपकी सही है। लेकिन ऐसी क्या मजबूरी आ गयी जो आप और आपका परिवार चोरी करने लग गया।
बन्दर: Kleptomania का नाम सुना है। ये बीमारी हमारे दादी को थी उनसे हमारे दादा को हुई और अब मुझे है।

संवाददाता: हा हा, आप मजाक कर रहे हैं ।
बन्दर: शुरू किसने किया? 

संवाददाता: मतलब आप चोरी को चोरी नहीं मानते?
बन्दर: एक तो खाने पीने के दाम बढ़ा दिए हैं और बोलता है चोरी क्यूँ करते हो। किसी तरह से खरीद भी लो तोह पकाओगे कैसे गैस के दाम जायदा हैं और पका भी लिया तोह खाओगे कैसे हाथ पे रख के क्यूंकि बर्तन खरीद नहीं सकते।

संवाददाता: किसने कहा है आप खरीद के खाओ आप तो पेड़ से खाते थे ना ?
बन्दर: मनुष्य ने पेड़ छोड़े हैं क्या ? 

संवाददाता: बात तो आपकी सही है। लोगो तोह आपसे प्रेम करते हैं आपकी पूजा करते हैं।आपको खाने के लिए मंदिर में फल समर्पित करते हैं।
बन्दर: वो सब तोह मंदिर का पुजारी के पेट में चला जाता है।

संवाददाता: वैसे आज कल हनुमान जी कहाँ हैं? उनको तोह अमृतव का वरदान था।
बन्दर: इश्वर ने उन्हें अमर तोह बनाया लेकिन ये नहीं बताया था की दानव ख़तम नहीं हुए हैं।


संवाददाता: दानव यानि की मनुष्य
बन्दर: बड़ी अची तरह पहचान रहे हो अपने आपको तुम तोह....खो खो :-) 


संवाददाता: आखिरी सवाल मनुष्य ने अगर वो सब खाना बंद कर दिया जो आप खाते हैं और आपको देना भी बंद कर दिया तब क्या होगा ? तब आप क्या चुरायेंगे ?
बन्दर: पैसे, डोल्लर और पौंड 

संवाददाता:  उसका आप क्या  करेंगे ?
बन्दर: फिर हम खरीद के खाया करेंगे :-) क्यूंकि हमारे पास और कोई विकल्प नहीं होगा।

संवाददाता: तो देखा आपने बन्दर की कहानी खुद बन्दर की जुबानी ।

-------- लेख द्वारा 

पत्रकार मतवाला  



Monday, August 6, 2012

राष्ट्रीय पक्षी की इज्ज़त तार तार

अभी मानो तो कुछ ही दिन पहले की बात है। मैं अपने पितजी के साथ था और अपनी कार में था तभी वाहन एक आदमी मोर का पंख  बेच रहा था। जब मैं वहाँ देखा है कि वहाँ एक मोर के पंख  बेचने वाला है अचानक कुछ मेरे दिमाग में एक ख्याल आया।

सबसे पहली बात तोह ये थी की......क्या हमारे हिंदुस्तान का राष्ट्रीय पक्षी मोर है?

क्या आप महसूस कर सकते हैं की कैसा लगता होगा जब उस पक्षी के शरीर से ये पंख निकले जाते होंगे । वोह आ सहाए दर्द । क्या होता होगा इन  पक्षी के पंख निकलने के बाद ? ।

चलो ये इस राष्ट्रीय पक्षी से ही पूछते हैं ।
आइये लेकर चलते हैं आपको सीधे वहीँ जहाँ हमने अपने एक संवाददाता के द्वारा एक ऐसे ही पीड़ित मोर के घर का  पता लगाया और हमने उनसे बात की।

संवाददाता: नमस्कार, मोर जी आप हमे खुल के बता सकते हैं की आप पे किस प्रकार का ज़ुल्म हुआ और आपकी इज्ज़त को किसने तार तार किया ।



मोर (एक चादर से अपने  आप पे लपेटी हुई मुद्रा में):  :'-( :'-( :'-( :'-(  

संवाददाता: देखिये आप अगर इसी प्रकार रोयेंगे तो हम आपकी आवाज़ लोगो तक कैसे पहुंचाएंगे।

मोर: :'-( देखिये आप नि समझ सकते की मुझपे क्या बीत रही है। मेरी मोरनी ने भी मुझे पहचान ने से इंकार कर दिया है। रोज़ रोज़ बोले है "ले दे के एक वोह ही तो तुम्हारे पास था । और वोह भी तुम नीलाम करके आगये ।" अब कौन उसे ये बताये की ये हिंदुस्तान के लोगों ने मुझे  राष्ट्रीय दर्जा तोह दे दिया है लेकिन सिर्फ किताबों में और कहानी में। लोग मुझे देखना पसंद करते हैं मगर मेरी पंखों को घर में सजा ने  में विश्वास रखते हैं। एक बार मुझे भी पोंछ लो की मुझे क्या लगता है।

संवाददाता:  मोर जी ये बताइए की आपको इसके लिए कितने डोल्लर या रूपया मिलता है?

मोर:  :'( आपको शर्म नि आती यहाँ मेरी इज्ज़त लूट ली जाती है, बिना कुछ बताये।आपको क्या लगता है मै अपनी मर्ज़ी से जाता हूँ अपने पंखा उखडवाने। ये आदमी/इंसान  इतना गिर चूका है की इसको किसी चीज़ की परवाह नहीं है।

संवाददाता: एक और सवाल.....पलीज़ 


मोर: देखो जायदा सवाल जवाब मत करो फिर कभी पूछ लेना। अगर मेरी मोरनी को पता लगा की तुम संवाददाता मेरा इन्टरविउ लेने आये हो मुझे तलाक़ दे देगी । और तुमको भगा भगा के मारेगी।

संवाददाता: तो देखा आपने  मोर की कहानी खुद मोर की जुबानी।


मेरे पूछने पर उसका जवाब ये था ये मैंने ये वृन्दावन से लेकर आया हूँ । :-D सुन कर भी हसी आ जाती है श्री कृष्ण की नगरी से।

अगर ऐसा है तोह हमारे राष्ट्रीय पक्षी का ये अपमान है। लोग अपनी ख़ुशी के लिए खरीद भी रहे हैं। मुझे तोह सुन कर भी आजीब लगता है की लोग ऐसा कैसे करते हैं । जहाँ एक ओर अपने राष्ट्रीय के प्रति निष्ठा के शब्द बोलते हैं और दूसरी ओर अपने ही हांथो से देश का गला घोंटते हैं ।


----- लेख द्वारा

पत्रकार मतवाला